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Waterman Rajendra Singh on his activities in Maharashtra

Published in Marathi Daily Pudhari on 9th January 2018



साक्षात्कार डॉ. राजेंद्र सिंह

जलपुरुष नाम से विख्यात मैग्सेसे एवं स्टॉकहोल्म वाटर पुरुस्कार से सम्मानित डॉ. राजेंद्र सिंह एक अरसे से महाराष्ट्र में पानी की समस्या के निवारण के लिए काम कर रहे हैं. उनके कामों का क्या प्रभाव पड़ा है इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार दीपक पर्वतियार ने विस्तार से उनसे बातचीत की.  

प्रश्न 1. महाराष्ट्र में आप काफी समय लगा रहे हैं. आपके कामों का क्या प्रभाव हो रहा ?

उत्तर. महाराष्ट्र में हम पांच तरह के काम कर रहे हैं. एक तो जल साक्षरता का काम जिसमें मेरा बहुत समय लगता है. महाराष्ट्र इस देश में अकेला राज्य है जहां सरकार, समाज और एकेडेमिक और एडमिनिस्ट्रेटिव तथा सोशल एडमिनिस्ट्रेटिव लीडरशिप के लोगों ने मिलकर पूरे राज्य में जल साक्षरता का एक अभियान  शुरू करने का काम किया है. यसदा में उसका सेंटर है. योजना में बहुत अच्छी टीम काम कर रही है. मैं उनको मदद करता हूं. उनको समय देता हूं.
दूसरा काम जलयुक्त शिवार का है. वहां कुछ जगह जलयुक्त शिवार में जहां-जहां कुछ ऑफिस से और सामाजिक कार्यकर्ता मिलकर कुछ जानना चाहते हैं तो मैं उनको जाकर मदद करता हूं.
तीसरा काम हम लोगों ने महाकाली नदी पर शुरू किया है. महाकाली नदी बिल्कुल सूखी  मरी हुई नदी थी. वह सांगली जिले की जत तहसील से शुरू होती है और कर्नाटक से पहले अग्रणी में मिल जाती है. अब तक वहां बारिश के दिनों में भी टैंकरों से पानी सप्लाई होता था. महाकाली नदी की लंबाई कुल 22 किलोमीटर थी इसमें हमने पूरा पानी जो बारिश का पानी था वह जगह जहां रोक कर रिचार्ज करने का काम किया जिसके कारण आज खेती हरी भरी खड़ी है और वहां के लोगों को इससे रोजगार मिलेगा. अभी भी वहां पर काम चल रहा है इसलिए मुझे बार बार जाना पड़ता है. दूसरा अग्रणी नदी जो बड़ी नदी है यह खानापुर तहसील से शुरू होती है और कर्नाटक के में जाकर नीचे कृष्णा नदी में मिलती है. यह जो अग्रणी नदी है यह एक तरफ से पूरी नदी दुष्काल और सूखाग्रस्त थी लेकिन इस नदी में अभी भी पानी भरा है और अच्छी खेती दोनों तरफ हो रही है. हम इस नदी पर पिछले 6 सालों से काम कर रहे हैं लेकिन उसका अच्छा असर अब दिखाई देने लगा है. और इस काम में सरकार भी मदद कर रही है. यह बहुत ही सूखा वाला इलाका था इसलिए सरकार ने कुछ थोड़ा पानी इस नदी के लिए हमें दिया है जिससे नदी में जो हमारे 22 छोटे छोटे चेक डैम बने थे उन सब में पानी भर रहा है. ऊपर के थोड़े चेक डैम  अभी खाली है क्योंकि उनमें जो लास्ट फेज है उसका पानी भी आ सकता है बाकी तो यह नीचे की नदी में पानी है.
अब तो उस काम को उस में पानी भरना वह नदी पूरी बहने लगे उसके इंतजाम करने के लिए बार बार देखने जाना होता है और जो वहां बड़ा काम है वही है कि महाराष्ट्र के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करके दूसरे जगह पर भी काम शुरू करवाना.

प्रश्न 2. इस काम में कितनी संस्थाएं आपके साथ जुडी हैं और कितने लोग इसमें संलग्न हैं? क्या वे स्वत: ही आपसे जुड़ते हैं और किन वजहों से?

उत्तर: आप देखिए महाराष्ट्र की संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को जब जब अपने कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए उनकी समझ बढ़ाने के लिए और उनको पानी का काम और प्रकृति का काम करने के लिए प्रेरित करने की जरुरत होती है तो वह हमें याद करते हैं, हमें खुद बुलाते हैं और हम उनके पास जाकर उनकी मदद करते हैं. लेकिन जो महाकाली नदी और अग्रणी नदी पर काम चल रहा है हम वहां के समुदायों के साथ काम कर रहे हैं.
महाराष्ट्र के गांव के लोगों के साथ सीधे मिलकर मदद करके और उनको मोटिवेट करके उनके काम में हम लोग मदद करते हैं. और उस काम के कारण वह सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन बन गया है. वह सामुदायिक विकास मॉडल बन गया जिसमें समाज ने खुद ने अपना भी साधन  भी लगाया जिसके कारण वह काम बहुत अच्छे स्थाई तौर पर बन रहे हैं. महाराष्ट्र में हमने बहुत सारे जल  नायक बनाए, जल प्रेमी बनाए, जल दूत बनाए, जल सेवक बनाए, और जो सरकारी लोग हैं उनके लिए प्रशिक्षण में मदद की जिससे वे जल कर्मी बने. महाराष्ट्र में अलग तरह  के पानी के कामों में ज्यादातर लोगों को तैयार करने की प्रेरणा का काम और महाकाली और अग्रणी में प्रत्यक्ष जल व् मिटटी संरक्षण के काम हम गाँव वालों से करा रहे हैं. इस पूरे काम में हर वर्ग के हजारों लोग लगे हैं.

प्रश्न 3. आपने पूर्व में सतारा, सोलापुर, लातूर, बीड, उस्मानाबाद में भी पानी का काफी काम किया था. उसका क्या प्रभाव पड़ा है. क्या इन क्षेत्रों के लोग अभी भी आपसे जुड़े हुए ? अब वे किस तरह से जुड़े ?

उत्तर. लातूर, उस्मानाबाद, बीड और सतारा, यह पूरा क्षेत्र महाराष्ट्र का जल संकट से जूझता हुआ क्षेत्र है. 3 साल पहले 2015 में हमने उस्मानाबाद में और लातूर में काम शुरु किया था. हम इतना कह सकते हैं उस्मानाबाद जिले के सिदोन गांव और कई गांव बेपानी थे, उनमें पानी हुआ. लातूर जिले की जो नदी पूरी सूख गई थी जिसमें बिल्कुल पानी नहीं था उसमें इस साल पानी है. आप जानते हैं लातूर जिले को कृष्णा नदी का पानी लाकर पिलाया गया था ट्रेन से. लेकिन अब लातूर में अपना पानी है. उसका कारण है कि  लातूर में पानी बरसा, जो पानी नदी में बह के बाहर चला जाता था वह अब नदी में रुकने  लगा. इस नदी में पानी का काम करने के लिए वहां की बहुत सारी संस्थाओं ने और सरकार ने काम किया. तरुण भारत संघ की तरफ से मैं बराबर उस काम में मिला और सारे राजनीतिक दलों ने -- कांग्रेस ने भी और बीजेपी ने भी-- सब पार्टियों ने उस काम में अपनी तरफ से सहयोग किया. मैं जानता हूं कि वहां के युवा नेता अमित देशमुख ने जो पैसा उस में दिया वह तो मेरे हाथों से ही चेक  दिलवाए. तो इस तरह से वह एक बड़ा काम वहां उस इलाके में हुआ जिसमें राज, समाज और सब लोगों ने मिलकर उस नदी को पुनर्जीवित करने में अपना योगदान दिया. इसी तरह से बीड  में भी काम हुए. कई जगह इन क्षेत्रों में इतना कह सकते हैं कि जल संरक्षण के काम तो हुए हैं और यह जो जल संरक्षण के काम है, इनसे भूजल पुनर्भरण भी हुआ. लेकिन हम निकाल ज्यादा रहे हैं तो जब तक भूजल कम नहीं निकलेगा, निकालने में कमी नहीं आएगी, जब तक रिचार्ज-डिस्चार्ज का संतुलन नहीं बनेगा, महाराष्ट्र के लोग बेपानी बने रहेंगे.
महाराष्ट्र का जो फसल चक्र है वह बहुत डेंजरस है दूसरी जगह पर तो एक तरह से लैंडस्केप  चेंज हो रहा है लेकिन यहां फसल चक्र में चेंज हुआ है वह पूरा कमर्शियल हो गया हैफसल चेंज होने के कारण यहां का दृश्य बहुत बदल गया और यहाँ  धरती बेपानी हो गई है और वहां जो बड़े लोग हैं वह बड़े-बड़े बोरवेल लगाकर पानी निकाल लेते हैं और जो गरीब है वह बेपानी होकर अपना गांव छोड़कर मजबूर होकर बाहर चले जाते  है.
 तो गरीब लोगों को भी पानी कैसे मिले इस पर हम लोगों ने जल चेतना का काम किया और एक तरह से इलाकों में गांव गांव पैदल यात्रा करके भी हमने थोड़ी समझाने की कोशिश की कि यह पानी का काम कैसे किया जा सकता है. तो बेसिकली एक तरफ तो पानी को समझना, पानी को सहेजना और फिर सहेजकर लोगों को समझाना, और फिर पानी को प्रदुषण, अतिक्रमण और शोषण मुक्त बनाने हेतु  सत्याग्रह करना यह चारों काम हमने महाराष्ट्र में किए हैं और हम कह सकते हैं कि इसमें जो भी महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में लोग जुड़े उन्होंने इस को बहुत अच्छे से ईमानदारी से काम किया. वहां के अखबारों ने भी बहुत अच्छी महत्वपूर्ण भूमिका इस काम में निभाई सभी अख़बारों ने, छोटे बड़े, कुछ न कुछ पानी का काम और पानी के संरक्षण का काम किया है. लगता है कि इस काम को अब ज्यादा फोकस इस बात पर करना चाहिए कि धरती का पेट खाली ना हो जाए उस पर यदि उस पर हमारा जोर होगा तो फिर हम लोग अपने समाज को पानीदार बना सकेंगे.

प्रश्न 4. महाराष्ट्र में, खासकर विदर्भ में अभी भी किसान काफी तादाद में आत्महत्या कर रहे हैं. इस दिशा में आपने किस प्रकार ध्यान दिया है ?

उत्तर. मैं कह सकता हूँ कि विदर्भ के कुछ गावों ने अपनी जन उपयोग दक्षता बढाकर अपने को पानीदार बनाया है. वहां के बैंकों को किसानों की बुरी दशा में कर्जदारी का डंडा नहीं चलाना चाहिए. जो किसान कर्ज नहीं दे पा रहे हैं उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार कर के अभी कर्ज वसूली के काम को रोकना चाहिए.

प्रश्न 5. क्या विदर्भ को आप और ज्यादा समय देने के पक्ष में ?

उत्तर. लेकिन हम ना तो कोई फंडिंग एजेंसी है, और ना कोई सरकार हैं. हम समाज हैं. समाज में समाज की मदद करने का जो भाव होता है वह आपस में एक दूसरे के प्रति विश्वास से जगता है. तो जो विश्वास हमारे प्रति मराठवाड़ा के लोगों में दिखता था, और मराठवाड़ा के लोगों ने पिछले 4 सालों में बहुत तो जुड़  के सहयोग करके काम किया, विदर्भ में इसलिए भी नहीं दिखा क्योंकि वह विश्वास उनका अपना बहुत टूटा है. एक जमाना था जब यहां के लोग अच्छे सुखी समृद्ध लोग थे लेकिन पिछले दिनों में जिस तरह से यह समाज बेपानी होकर और कर्ज में डूब कर आत्मघाती बना, उस तरह से इस समाज में बहुत गहराई से काम करने की जरूरत थी और वह जरुरत तब होती है जब समाज को यह एहसास होता है कि उनको अपने को अच्छा करना है.
तो विदर्भ में वह विश्वास तो है अपने को अच्छा बनाने का. ऐसा बिल्कुल नहीं कह सकते कि विश्वास नहीं है. पर एक इस बुराई से लड़ने की तत्परता, गंभीरता, और इस आत्महत्या का मुकाबला करके उसको रोकने की जो शक्ति चाहिए, उसके लिए हमने वातावरण निर्माण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हम इधर बहुत गए लेकिन हम विदर्भ में उस तरह का खड़ा काम नहीं कर पाए जिस तरह का काम हम मराठवाड़ा में कर पाए.
लेकिन वैसा काम करने की हमारी इच्छा है और वह इच्छा है कि हम वहां विदर्भ में भी उसी तरह सक्षम काम खड़ा करें. यह काम तभी संभव होगा जब विदर्भ के लोग भी चाहेंगे. यदि विदर्भ के लोग नहीं चाहे और हम चाहें तो काम नहीं होता हम और विदर्भ के लोग मिलकर जब विदर्भ को आत्महत्या मुक्त बनाने की तैयारी और संकल्प के साथ जुड़ेंगे तो विदर्भ में हरियाली और तेजी लाने का काम होगा. अगले आने वाले समय में इसकी संभावना है और मैं ज्यादा तलाश करूंगा और देखूंगा कि हम कैसे उस काम को और आगे बढ़ा सकते हैं.


प्रश्न 6. महाराष्ट्र सरकार की किसानो के कर्जों की माफ़ी की घोषणा को आप किस प्रकार देखते हैं.

महाराष्ट्र  सरकार ने जो कर्ज माफी की घोषणा की है पहले तो वह पर्याप्त नहीं है. महाराष्ट्र  सरकार ने दबाव में आकर कर्ज माफ़ किया है. और आज भी करोड़ों की वसूली के लिए बैंक जिस तरह से काम कर रहे हैं उस से किसानों का विश्वास टूटा  है. सरकारों की घोषणाओं पर समाज को, किसान को विश्वास होता है. पर  महाराष्ट्र  सरकार ने महाराष्ट्र के किसानों के साथ विश्वास घात किया है क्योंकि महाराष्ट्र  सरकार ने घोषणा कर के भी कर्ज वसूली को रोका नहीं है. अभी भी वहां कर्ज वसूली जारी है. महाराष्ट्र सरकार बहुत कर देती है किसानों को और बड़े लोगों ने ज्यादा कर्जा लेकर बैंकों का दीवाला निकाला है. लेकिन जो गरीब आदमी है, जो बहुत ही लाचार है, बेकार है, हताश है और बीमार है, ऐसे लोगों पर कर्ज है और वह कल के डर में आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं. सरकार को यह जो डर है, इसे निकालने का काम करना चाहिए था. यह काम सरकार ने नहीं किया. इसलिए इस वक्त सरकार को यह देखना चाहिए कि वह किस प्रकार महाराष्ट्र के किसानो का विश्वास दोबारा जीत सके. उस के क्या तरीके हो सकते हैं वह सरकार को ही तय करना होगा क्योंकि जब तक सरकार यह खुद तय नहीं करेगी तब तक यह संभव नहीं है.

प्रश्न 7. पिछले दिनों मदुरई में अन्ना हजारे की उपस्थति में आपने कृष्णा और कावेरी के बेसिन में बसे लोगों को जोड़ने का काम किया और उन लोगों ने मिलकर आपसी विवादों को दूर करने की सहमती जताई. अन्ना अब मार्च में किसानो के लिए दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन शुरू कर रहे हैं. इस अनशन में  आप क्या सम्भावना देख रहे हैं?

उत्तर. कृष्णा और कावेरी का विवाद बहुत पुराना है. हमने कोशिश की कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और जो भी संबंधित राज्य हैं, सब मिलकर इस का समाधान खोजें. पिछले महीने मदुरई में सभी राज्यों के लोग इकट्ठे हुए उसमें अन्ना हजारे भी आए. सबने वहां पानी के विवादों के समाधान की चिंता जताई और इस दिशा में काम करने का विश्वास जताया. मैं समझता हूं कि यह कृष्णा और कावेरी का विवाद जुडिशरी को मिटाना बहुत मुश्किल है. यह विवाद तभी मिटेगा जब जुडिशरी और समाज दोनों मिलकर इसे निपटाएंगे. जब तक दोनों में आपस में एक वातावरण निर्माण होगा तभी इस विवाद का समाधान होगा क्योंकि ऐसे विवादों का समाधान वातावरण निर्माण से बढ़ता है. मैं समझता हूं कि यह जो इस वक़्त  परिस्थिति है यह हमारी परिस्थिति विश्वास को कायम करने की है. इसीलिए हम मदुरई  में मिले थे.
वहां अन्ना ने यह भी कहा कि किसानो की हालत बहुत खराब हो गई है और सरकारे सुन नहीं रहे हैं, इसलिए हम मार्च में सरकारों को सुनाने के लिए सरकारों के कान खोलने के लिए यह आंदोलन शुरू करेंगे. मैं समझता हूँ कि यह आन्दोलन सही समय पर अन्ना का सही निर्णय है. इस समय देश भर के किसान तबाह हैं. वो लोग, यदि अन्ना ने आन्दोलन किया, तो इसमें जी जान से भागिदार बनेंगे और जब सरकारों पर दबाव् होगा तो सरकारें सही दिशा में काम शुरू करेंगी. आज किसान और मजदूर दोनों ही बेहाल हैं और उनका हाल कोई देखने और सुनने वाला मौजूद नहीं है.

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